एंटीबायोटिक होने लगे बेअसर, इलाज करना मुश्किल हुआ

एंटीबायोटिक होने लगे बेअसर, इलाज करना मुश्किल हुआ

भारत समेत दुनिया के अधिकांश देशों में गोनोरिया यानी सुजाक (एक तरह का गुप्‍त रोग) जैसी बीमारी का इलाज बहुत मुश्किल और कभी कभी तो असंभव हो गया है। स्‍वास्‍थ्‍य से संबंधित एक रिपोर्ट में ये दावा किया गया है। इस रिपोर्ट में भारत समेत 77 देशों का जिक्र किया गया है। भारत समेत पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में करीब 1.14 करोड़ लोग हर वर्ष इस बीमारी की चपेट में आते हैं। हर बार इस बीमारी के इलाज के लिए नई एंटीबायोटिक दवाएं आती हैं और बीमारी का बैक्‍टीरिया उसके प्रति दवा प्रतिरो‍धक क्षमता विकसित कर लेता है।

गौरतबल है कि सुजाक यौन संक्रामक बीमारी है जिसे क्‍लैप या ड्रिप के नाम से भी जाना जाता है। बैक्‍टेरियम निसेरिया गोनोरियाई नामक बैक्‍टीरिया के कारण यह बीमारी फैलती है और यह बैक्‍टीरिया शरीर के म्‍यूकस मेंबरेंस में आसानी से कई गुना तक बढ़ जाते हैं। बैक्‍टीरिया को बढ़ने के लिए गर्म, गीले जगह की जरूरत होती है जो कि शरीर के प्रजनन अंगों के छिद्रों, मुंह, गला और गुदा आदि में आसानी से मिल जाता है।

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्‍यक्ष डॉक्‍टर के के अग्रवाल के अनुसार पूरी दुनिया में एं‍टीबायोटिक का बेकार होते जाना एक बड़ी समस्‍या बनता जा रहा है। इलाज के मामले में चिकित्‍सकों के पास पहले से ही सीमित संसाधन होते हैं और ऐसे में अगर पहले से उपलब्‍ध दवा के खिलाफ बैक्‍टीरिया प्रतिरोधक शक्ति हासिल कर ले तब तो इलाज करना ही मुश्किल हो जाएगा।

डॉक्‍टर अग्रवाल कहते हैं कि टायफाइड, न्‍यूमोनिया, टीबी जैसी बीमारियों में पहले ही अधिकांश एंटीबायोटिक असर करना बंद कर चुकी है और अब गोनोरिया या सूजाक भी ऐसी बीमारियों में शामिल हो गया है। डॉक्‍टर अग्रवाल कहते हैं कि अगर एंटीबायोटिक का असर कम हो जाए तो मरीज के अस्‍पताल में रुकने की अवधि बढ़ने के साथ-साथ इलाज का खर्च बढ जाएगा और मौत का जोखिम भी। 

दरअसल डॉक्‍टर और मरीज दोनों को एंटीबायोटिक के इस्‍तेमाल के बारे में ज्‍यादा जागरूक होने की जरूरत है। एंटीबायोटिक का इस्‍तेमाल सिर्फ तभी करना चाहिए जब जरूरत हो। इन दवाओं का अनावश्‍यक इलाज इनका असर खत्‍म कर देता है। दुनिया में गिने-चुने एंटीबायोटिक्‍स हैं और अगर हमारे शरीर पर उनका असर धीरे-धीरे खत्‍म होने लगता है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने एंटीबायोटिक के अत्‍यधिक इस्‍तेमाल के खिलाफ जागरूकता लाने के लिए समय समय पर कई पहल की है। इनमें ‘जरूरत भी है क्‍या’, ‘ 3ए, एवाइड एंटीबायोटिक एब्‍यूज, कैंपेन’, ‘यूज वाइजल नॉट वाइडल’ और ‘थिंक बिफोर इंक’ जैसे अभियान शामिल हैं। 

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